Nadi boli samandar se - Dr. Kunwar bechain
आज की भागदौड़ और व्यस्तता वाली जिंदगी में ज्यादातर हम किसी ना किसी कारण वश परेशान रहते है लेकिन अगर हम कुछ गाने और कविताएं गुनगुनाए या सुने तो हमारे दिमाग को काफी हद तक शांति और आनंद मिलता है। प्रस्तुत कविता डॉ कुंवर बेचैन के द्वारा लिखी गई है।।
यह कविता आपको प्रेम के एक अनोखे सरोवर में डूबो देगी।।
कविता के बोल कुछ इस तरह है:-
नदी बोली समंदर से, मैं तेरे पास आई हूं,
मुझे भीगा मेरे शायर, मैं तेरी ही रूबाई हूं,
मुझे ऊंचाइयों का वो, अकेला पन नहीं भाया,
लहर होते हुए भी, मेरा तो मन ना लहराया
मुझे बांधे रही, ठंडे बर्फ की रेशमी काया
बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मै धरती पर
छुपा के रख मेरे सागर, पसीने की कमाई हूं
मुझे पत्थर कभी घाटियों, के प्यार ने रोका,कभी कलियों कभी फूलों, भरे त्यौहार ने रोका,मुझे कर्तव्य से ज़्यादा, किसी अधिकार ने रोका,
मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आईमैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ
पहन कर चांद की नथुनी, सितारों से भरा आंचल नए जल की नई बूंदे, नई घुंघरू नई पायल नई झूमर नई टिकुली,नई बिंदिया नया काजल पहन आयी मै हर गहेना, की तेरे संग ही रहना
लहर की चूड़ियां पहेनी, मै पानी की कलाई हूं।।
लेखक- डॉ कुंवर बेचैन
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